बुधवार, 9 मार्च 2011

क्या लिखूं



             


क्या लिखूं , क्या न लिखूं ,बड़ी समस्या है| मन में तरह-  तरह के विचार आ रहे हैं और उन विचारों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का एक समूह मेरे मानस में मंडरा रहा है | हर शब्द प्रतीक्षारत है कि अब उसकी बारी आयेगी और उसे अपनी उपयोगिता पर गर्व करने का अवसर मिलेगा| पर मैं सोच रहा हूँ कि आखिर क्या लिखूं क्योंकि जो लिख दूंगा वो शब्द तो खुश हो जायेंगे पर बाकी शिकवा करने लगेंगे | कहेंगे - "क्यों भाई , हमें क्यों नहीं लिखा ,क्या हम लिखने लायक नहीं हैं या हमें लिखने में आपको दिक्कत होती है|जो लिख दिए गए वो इतराना शुरू कर देंगे| उन्हें आभास होगा कि बस हमीं लिखे जाने लायक थे | ये तो हुआ शब्दों का सोच-  विचार पर अब आते हैं असल मुद्दे पर | 
सरसरी तौर पर देखें तो ऊपर लिखे वाक्य हास्य उत्पन्न करने की एक कोशिश जैसा लग सकता है , पर यह महज़ हास्य- व्यंग्य के उद्देश्य से लिखे वाक्य नहीं है| यह कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने की एक कोशिश है | जरा गौर से देखें और सोचें कि क्या शब्दों का चुनाव वाकई बहुत आसान है? अपने विचारों को शब्दों का स्वरुप देने के लिए कलम उठाइए और इसे महसूस करिये | आपके पास बहुत सारे शब्द होंगे और आपको उनमे से उपयुक्त शब्दों का चयन करना होगा और फिर आप ऊपर लिखे वाक्यों का निहित आशय समझ जायेंगे| 
फिर तो ये बड़ी भारी समस्या है | क्या लिखें , क्या छोड़ें ,बड़ा झंझट है|अपने भावों को कौन से शब्द दें कि पाठक को हमारी मनःस्थिति का परिचय मिल सके और पाठक अंततः उस सन्देश तक पहुँच सके ,जो हम उसको देना चाहते हैं | अब अगर समस्या है तो कहीं न कहीं उसका समाधान भी होगा | यह समाधान कहीं किसी प्रयोगशाला में नहीं ढूँढा गया है बल्कि यह हमारे अंदर ही है |
असल में , शब्द-चयन एक कला है और कलाएं हमेशा अभ्यास से ही निखरती हैं | जितना ज्यादा हम सोचेंगे ,हमें अलग-  अलग विचार और उन विचारों के लिए शब्द-समूह मिलते जायेंगे तथा जितना ज्यादा हम उन विचारों को कलमबद्ध करेंगे , शब्दों के चुनाव की हमारी समझ विकसित होती जायेगी| ज्यादा लिखने से और सोच-विचार कर लिखने से शब्द-चयन की परिपक्वता आपके लेखों में दिखने लगेगी | सही शब्दों के चुनाव से लेखन में धार आती है और पाठक हमारे विचारों को जल्दी समझता है | तो आप सोचिये ,शब्द चुनिए और लिखिए |मुझे अनुमति दें , मैं भी चलूं , कुछ विचारों को शब्द देने हैं |