सोमवार, 24 नवंबर 2014

मुझे मिलना है उससे

मुझे मिलना है उससे
मुझे मिलना है उससे
जो सुन लेता है हमेशा मेरी पदचाप
सुनता है मेरी बातें तब भी
जब मैं होता हूँ चुपचाप 


जो अँधेरे में भी पहचानता है मेरा चेहरा
जो मेरी हलकी सी आहट पर,
मेरे माथे पर पड़ी पसीने की बूँद
को देख कर कहता है
कि थोड़ा आराम कर लो|

वो जो तब भी साथ होता है
जब परछाई भी नहीं होती है
वो जो हर आने वाली सुबह
धीरे से कहता है
कि चलो, सफ़र पर निकलना है
अब कर लिया आराम,
नया पथ तलाशना है

वो जो कहीं मेरे अन्दर बैठा
मुझे निर्देशित करता है
वो जो हर दुविधा का कोई
हल निकाल सकता है
वो आखिर कहाँ छुपा है
मुझे मिलना है उससे

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