रविवार, 9 नवंबर 2014

किस ऑफ़ लव


१- मैं सार्वजनिक चुम्बन का विरोध नहीं कर रहा और इसे अश्लील नहीं मानता|
२- नितांत व्यक्तिगत भावों और क्रियाओं का राजनीतिक इस्तेमाल एक गलत शुरुआत है|
३- इस अभियान से मुझे कोई ख़ुशी या दुःख नहीं है पर जब विरोध करने वाले ये कह रहे हैं कि अपने घर से शुरू करो, अपनी माँ बहन को ले जाओ तो फिर ऐसा लग रहा है कि ऐसे अभियान हर गली मोहल्ले में चलें| बदतमीजी की भी हद होती है कोई| जो भी वहाँ गये हैं, अपनी मर्जी से गये हैं| उनमें से अधिकांश किसी न किसी की माँ बहन हैं|
४- विरोध करने वाले ये नहीं कह रहे कि अपने बाप भाई को ले जाओ पर माँ बहन तक जरुर पहुँच रहे हैं| इससे उस संस्कृति की महानता समझ में आ रही है जिसे ये बचा रहे हैं|


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देख भाई, मुझे तो 'किस ऑफ़ लव' से कोई आपत्ति नहीं है|
पर भाई, मुझे तब बहुत आपत्ति है जब तू कहता है कि सिर्फ प्रेमिका को ही ले के जा रहे हैं लोग| अपनी माँ बहनों को क्यों नहीं ले जा रहे|
तो भाई ऐसा है कि तुम्हें लगता है कि 'किस ऑफ़ लव' वाले अश्लीलता कर रहे हैं पर मुझे तो सबसे बड़े अश्लील तुम लगते हो| हर बात में माँ और बहन को शामिल करने वाले कूढमगज, जो वहाँ प्रदर्शन में शामिल हैं उनमें से अधिकांश किसी न किसी की माँ और बहन ही हैं| और ऐसा बोलकर तुम उनको नीचा नहीं दिखा रहे हो बल्कि हर बात में माँ-बहन करने वाली अपनी मानसिकता का परिचय दे रहे हो|
देख भाई, चुम्बन तो प्रतीक है प्रेम का, स्नेह का| चाहे वो प्रेमी प्रेमिका में हो, चाहे दो मित्रों में हो, चाहे माँ बेटे में हो, चाहे पिता पुत्र में हो तुमको आपत्ति नहीं होनी चाहिये| सार्वजनिक स्थान पर चुम्बन लेना अश्लीलता नहीं है|
और भाई, पानी को एक स्थान पर रोक देने से सड़न पैदा होती है| सामाजिक व्यवहार के लिये भी ये बात सत्य है|
और सबसे बड़ी बात ये है भाई, कि ये भारत है| इसे तू तालिबान बनाये ये संभव नहीं है| तुम्हारे लिये एक शेर -
" आये हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग "

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देख भाई,
जब तू टुच्ची टुच्ची बातों पर विरोध कर रहा था, औरतों को डायन बता रहा था, उन पर घूँघट और बुर्के लाद रहा था, छूत अछूत डिफ़ाइन कर रहा था तब इसी धरती पर कुछ देशों के लोग पोलियो और मलेरिया की दवायें खोजने में व्यस्त थे, चाँद और मंगल पर यान भेजने में व्यस्त थे, मशीनें और कल पुर्जे बनाने में व्यस्त थे|
और भाई तू रोता है कि अब हम विश्व गुरु नहीं रहे 
//अब भी वक्त है

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