शुक्रवार, 29 मई 2015

[मेरी प्रथम बाल कविता - "बोलो पानी क्यूँ है नीला"]

दो भाई श्यामू और रामू
दोनों शरारती बंदर,
एक दिन की ये बात सुनो
वो गए घूमने समुन्दर|

बोलो पानी क्यूँ है नीला
रामू पूछे श्यामू से,
क्यूँ नहीं काला या पीला
रामू पूछे श्यामू से|

श्यामू भी बच्चा था आखिर
श्यामू तो फिर क्या बोले
श्यामू बोला चल रामू
चल सबसे पूछें भोले|

रामू ने मम्मी से पूछा
मम्मी ने पापा से पूछा
पापा ने चाचा से पूछा
चाचा ने दादा से पूछा

सबने इससे उससे पूछा
फिर भी न उत्तर किसी को सूझा
अब तो मास्टर जी से पूछो
बचा न कोई रस्ता दूजा|

मास्टर जी हैं बड़े प्रतापी
मास्टर जी विद्वान हैं,
कहते हैं कि पास मे उनके
कईयों कुंतल ज्ञान है|

श्यामू ने उनसे भी पूछा
बोलो पानी क्यूँ है नीला
बोलो बोलो मास्टर जी
क्यूँ नहीं ये लाल पीला|


 

 मास्टर जी थोड़ा मुस्काये
फिर थोड़ा सा ध्यान लगाये
दोनों को फिर पास बिठाये
और उनको उत्तर बतलाये|

सूरज से किरणें आती हैं
फिर सब दिशाओं में जाती हैं
नदी, सरोवर या हो समुद्र
जल में भी घुस जाती हैं|

ये किरणें सतरंगी हैं
सारी रंग बिरंगी हैं
जो चीज जैसा रंग लौटाये
वो वैसे रंग में रंगी है|

समुन्दर है इतना गहरा
किरणें तल तक न जातीं
ऊपर ही ऊपर से लगभग
सब की सब वापस आतीं|

पानी सोखे सारे रंग
लौटाये बस नीला रंग
देख के उसका ऐसा करतब
तुम दोनों बैठे हो दंग|

जब वो नीला लौटाता है
खुद नीला ही हो जाता है
फिर ये उसका नीला रूप
हम सबको ही लुभाता है|

जो जैसा सबको देता है
खुद भी वैसा ही पाता है
सुन लो प्यारे रामू श्यामू
ये सागर यह सिखलाता है|

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